डिजिटल युग में बच्चों की मासूमियत खतरे में: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जताई गहरी चिंता

डिजिटल युग में बच्चों की मासूमियत खतरे में: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जताई गहरी चिंता

Allahabad High Court Expressed deep Concern

Allahabad High Court Expressed deep Concern

Allahabad High Court Expressed deep Concern: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को बच्चों पर टीवी, इंटरनेट और सोशल मीडिया के प्रभाव को लेकर चिंता जाहिर की है. कोर्ट ने कहा कि यह माध्यम बहुत ही कम उम्र में बच्चों की मासूमियत को खत्म कर रहे हैं. उन्होंने कहा तकनीक की अनियंत्रित प्रकृति के कारण सरकार भी इनके प्रभाव को नियंत्रित नहीं कर सकती है.

बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस सिद्धार्थ की सिंगल बेंच ने यह टिप्पणी एक किशोर की ओर से दाखिल क्रिमिनल रिवीजन अर्जी पर की है. अर्जी में किशोर न्याय बोर्ड और कौशांबी की पॉक्सो कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी.

ये है पूरा मामला?

इसमें कहा गया था की नाबालिक लड़की के साथ सहमति से शारीरिक संबंध बनाने के कथित मामले में किशोर पर एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाए. कोर्ट ने कहा रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं है जिससे यह संकेत मिले की याची किशोर कोई शिकारी है. और बिना किसी उकसावे के अपराध दोहराने की प्रवृत्ति रखता है. सिर्फ इसलिए कि उसने एक जघन्य अपराध किया है. कोर्ट ने कहा याची किशोर को वयस्क के समकक्ष नहीं माना जा सकता है.

किशोर के रूप में चले मुकदमा

कोर्ट ने कहा कि याची किशोर पर किशोर न्याय बोर्ड द्वारा एक किशोर के रूप में मुकदमा चलाया जाए. कोर्ट ने रिवीजन अर्जी पर विचार करते हुए कहा कि अदालत ने मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन रिपोर्ट पर ध्यान दिया है. जिसमें पाया गया है कि पुनर्विचार कर्ता एक 16 वर्षीय किशोर का आईक्यू 66 है.

मानसिक आयु बेहद कम

कोर्ट ने कहा कि यह आई क्यू उसे बौद्धिक कार्यशीलता की सीमांत श्रेणी में रखता है. कोर्ट ने कहा कि सेंगुइन फॉर्म बोर्ड टेस्ट के आधार पर उसकी मानसिक आयु केवल 6 वर्ष आंकी गई. मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट याची किशोर के पक्ष में है, क्योंकि उसकी मानसिक आयु केवल 6 वर्ष है, जब वह 16 वर्ष से अधिक आयु का है.

कोर्ट ने कहा याची किशोर ने पीड़िता के साथ जब शारीरिक संबंध बनाए तब उसकी आयु 14 वर्ष थी. लेकिन कोर्ट ने इसे ध्यान में रखा कि पीड़िता को गर्भपात की दवा देना उसके विवेक पर नहीं था. इस फैसले में कई अन्य लोग भी शामिल थे. कोर्ट ने किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 के तहत चार मापदंडों के आधार पर प्रारंभिक मूल्यांकन किए जाने की बात कही है.

अपराध के परिणामों को समझने की क्षमता

कोर्ट ने मानसिक क्षमता, जघन्य अपराध करने की शारीरिक क्षमता, अपराध के परिणामों को समझने की क्षमता और अपराध की परिस्थितियों को नजरअंदर नहीं किए जाने की बात कही है. कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि याची किशोर पर वयस्क के रूप में नहीं बल्कि किशोर के रूप में ही मुकदमा चलाया जा सकता है.